सांखी:- गढ़वाली कविता
स्या एक मुट ऊजाल्यू जन; घिंदूड़ी की पांखी सी। स्या बाबा की ब्यटुलि जन त्…..; ब्वे की सांखी सी..! स्या बसंत ऋतु जन त्सूखी डाली… Read More »सांखी:- गढ़वाली कविता
स्या एक मुट ऊजाल्यू जन; घिंदूड़ी की पांखी सी। स्या बाबा की ब्यटुलि जन त्…..; ब्वे की सांखी सी..! स्या बसंत ऋतु जन त्सूखी डाली… Read More »सांखी:- गढ़वाली कविता