
1990 के दशक के आसपास जन्में बच्चे सन् 2003 तक के समया अवधि में तब के माडर्न बच्चे थे. मैं भी उन बच्चों में से एक था. डिजिटल का (D) डी और मोबाईल फोन का (M) एम कहीं दूर तक न सुना था ना देखा था. कार्टून नेटवर्क तो कभी देखा नहीं था तो दूरदर्शन ही पूरी दुनिया का दर्शन करा देता था. शनिवार और रविवार को जुनियर जी और शक्तिमान सबसे पसंदीदा धारावाहिक होता था. उन दिनों पहाड़ो के अधिकांश प्राइवेट स्कूल हिंदी मिडियम हुआ करती थी तो किसी प्रकार का ज्यादा अंतर नहीं होता था सरकारी और प्राईवेट स्कूलों में. पर वो समय स्कूलों का कुछ अलग ही होता था, कोई माँ, पिता अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने नहीं जाते थे ना लेने जाते थे, क्योंकि तब के माता पिता ने अपने बच्चों में आत्मविश्वास बच्चपन से ही बना कर रखते थे, और बच्चे अकेले ही स्कूल जाते थे. तब के स्कूल कुछ ज्यादा संस्कारी स्कूल थे, कक्षा 8 तक सब जैंसे भाई बहन की तरह स्कूल में रहते थे खेलते थे, इतने लाटे (Innocent ) थे तब के छात्र,अगर कहीं गुरुजी दिख जाए तो दूर से छिप जाते थे.जो आज के डिजिटल दौर में मुश्किल है. और आजकल कक्षा 5 में पढ़ने वाले बच्चे का फेसबुक स्टेटस “लव -लाईफ” के पंच लाईनों से भरा पढ़ा है. आजकल के बच्चों के दूध के दांत तब टूट रहे हैं पहले उनके दिल टूट रहे हैं. क्योंकि आज के बच्चे “देल्ली-बेल्ली मूवी के गीतों व हनी सिंह के गीतों ” के साथ पले पढ़े हैं, और तब के बच्चे “हम साथ साथ हैं” मूवी के गानों के साथ
मगर 1990 के बच्चों की स्कूलों में तब ज्ञान और संस्कार पर ज्यादा ध्यान दिया जाता था, तब गुरु और शिष्य की परंपरा थी तो संस्कार कुछ ज्यादा ही छात्रों पर पेले जाते थे, अगर किसी छात्र नी किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता की तो गुरु जी उसे खूब कूटते थे.उन दिनों स्कूलो में होने वाले वार्षिक कार्यक्रम में, लोक गीत, देश भक्ति गीत, नाटक, सरस्वती वंदना जैंसे गीतों को प्रमुखता दी जाती थी, डीजे का दौर था नहीं तो स्कूल की किसी मेडम व गुरुजी के साथ छात्रों को गाना पढ़ता था, और प्रोग्राम की तैयारी तीन महीने पहले से ही शुरु हो जाती थी. और रविवार को भी खास तैयारी होती थी. स्कूल के प्रिसिंपल की सख्त हिदायत रहती थी कि किसी भी प्रकार का फिल्मी गीत पर कार्यक्रम नहीं होना चाहिए और उन दिनो शाहरुख खान के रोंमाटिक गीतों पर ज्यादा पाबंदी थी. क्योंकि प्रिसिंपल नहीं चाहते थे कि “कुछ कुछ होता है” जैंसे फिल्मी गीतों के चक्कर में बच्चों को कुछ-कुछ हो ना जाए. इसीलिए प्रिसिंपल फिल्मी गीतों को अनुशासनहीनता की नजर से देखते थे उनका मानना था कि छात्रों के आचरंण पर इसका बुरा असर पढ़ता है
पर वो समय था ही कुछ अलग. कुमार सानु, उदित नारायण व जगजीत सिंह के गीतों व गजलों में अर्जित सिंह जैंसी दर्द भरी आवाज नहीं थी, कि ना चाहते हुए भी किसी छात्र को खुद के अंदर कोई आशिक नजर आए, तब के गीतों के शब्दों में गहराई तो थी मगर गीतों की धुन में इमोशन नहीं थे, जैंसे कि अर्जित सिंह के गीतों की धुनों में सुनने को मिलता है. स्कूल के प्रिसिंपल खुद पुराने गीत सुनते थे और गुनगुनाते थे वे खुद इतने लाटे (Innocent) थे कि गीतों व गजंलो के शब्दों का ज्यादा मतलब नहीं समझते थे, इसलिए वो हर साल रक्षाबन्धन पर स्कूल में क्लास की लड़कियों से उसी क्लास में पढ़ने वाले लड़को से राखी बंधवाते थे, और स्कूल के वार्षिक महोत्सव में उन्हीं लड़के लड़कियों को “मैय्या यशोदा ये तेरा कन्हैया” गीत पर डांस करवाते थे. और ये गीत उन दिनों सभी प्राइवेट स्कूलों के वार्षिक महोत्सव में सबसे ज्यादा चलता था. वैंसे तो प्रिसिंपल प्रेम पर आधारित गीतों के सख्त खिलाफ थे, पर मैय्या यशोदा ये तेरा कन्हैया गीत में उनको प्रेम नहीं बल्कि संस्कार दिखते थे. जबकि इस गीत में खुद लड़का पनघठ में लड़की का हाथ पकड़ता है, और उसे तंग करने की कोशिश करता है. क्योंकि उस दौर की फिल्मों में राधा व श्री कृष्ण के गीत एक सम्मान प्रेम को दर्शाने की योग्यता रखते थे. स्टूडेंट आफ द् ईयर की सेक्सी राधा व डेशिंग कृष्णा की तरह नहीं. ये शब्दों का ही अतंर है कि हम साथ साथ हैं की राधा व कृष्णां पर आधारित गीत आज भी प्रेम का दर्शन करवाता है. जिस गीत ने ना जाने कितने स्कूलों के वार्षिक महोत्सव सफलता पूर्वक सम्पन करवाए. क्योंकि उस समय के स्कूलों के राधा-कृष्ण लंच टाईम में खोखो, कबड्डी, व दस-बीस ज्यादा खेलते थे. वरना आज के दौर में स्कूल बस से शुरु होने वाले बच्चों की दिनचर्या शाम को घर आने तक अपने मोबाईल फोन में प्रेम रतन धन पायो जैंसी फ़ीलिंग के मैसेज लेकर लौटता है
1990 के दशक का प्रिंसिपल मुहब्बतें फिल्म के प्रिंसिपल अमिताभ बच्चन की तरह थे, जानते वो भी सब कुछ थे मगर स्कूल की परंपरा प्रतिष्ठा और अनुशासन ही उनका नारा होता था, तबके राधा और कृष्ण जैंसे स्टूडेंट चलते-चलते अगर यूहीं कहीं पर रुक जाते थे तो स्कूल के प्रिंसिपल अगले दिन स्कूल में बच्चों के माता पिता को बुला कर उनके प्यार के अरमानों का डिंक चिका डिंक चिका कर देते थे. पर आज के स्कूलों के प्रिसिंपल खुद करन जौहर से प्रभावित हैं लगता नहीं कि स्कूल हैं प्रेम के सतरंगी बोर्ड पर खुद प्रिसिंपल ने ना जाने कितने दिलों की चौक से “X” की परिभाषा बदली हैं क्योंकि आज स्कूल की मेडम भी खुद “मै हूँ ना” की सुष्मिता सेन की जैंसे बन ठन के आती है तो खुद स्कूल के प्रिसिंपल को मेडम को देखकर “दूम तरा दुम तरा दुम्मा” करने का मन करता है, तो वहीं खुद इस दौर के स्कूली राधा कृष्ण जैंसे बच्चों ने “X-गर्लफ्रेंड आफ द् इयर” के पिक शिक बना के रखे हैं. पर वो सतयुग था जब श्री कृष्ण के प्रेम ने गौकुल का भला किया था और प्रेम को दर्शन का मार्ग बतलाया था. तब अगर राधा रूठ भी जाती थी तो कृष्ण हीं उसे मनाते थे. पर आज अगर एक बार टीनेजर राधा रूठ जाये तो ना जाने कितने कृष्ण मनाने के लिए आतुर हैं. क्योंकि आज प्रेम का मतलब दर्शन नहीं प्रदर्शन है.
लेख:– हरदेव नेगी
बेहतरीन
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शानदार हरदेव भाई👌👌👌👌
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Soooooo nice bhaiya………..ye baten AJ k dor me satik baithti hain……
Bhaiya ur articles are always based on reality ND that is really attractive good job❣️