मैं तुम्हें ढूंढने (Mai Tumhe Dhoondne)
मैं तुम्हें ढूंढने श्रीनगर बजार तक,
रोज आता रहा, रोज जाता रहा,
तुम बथौं सी मुझे,
इधर उधर छकाती रही,
और मैं आंखी रिंगाता रहा,
जी एम ओ की गाड़ि में,
कभी कॉलेज की बस में,
कभि बिरला कैंपस में
तो कभी चौरास कैंपस में
मैं तुम्हें ख्वज्याता रहा,
तुम बाइक के पछिने बैठकर,
लबराती रही,
और मैं तुम्हें देखर सरील दुखाता रहा,
कभी वाटिका रेस्टोरेन्ट में,
कभी कॉलेज कैंटीन में,
कभी गोला बजार में,
कभी अलकनंदा घाट में,
कभी कमलेश्वर के बाट में,
मैं तुम्हें ताकता रहा,
तुम गैल्यांणी दगड़ी सैल्फी रहती रही,
मैं फेसबुक पर फोटू जूम करता रहा,
कभि ऐनुअल फैस्ट में,
कभि छात्र संघ चुनाव में,
कभि फ्रैशर पार्टी प्राची होटल में,
तो कभि सिरनगर मौल्या चरखी में,
तुम्हारी अन्वार से छल्याता रहा,
तुम हिटलर की ताती ताती जलेबी चटकाती रही,
और मैं बेमतलब बिल भरता रहा,
कभि प्रशासनिक भवन धरना प्रदर्शन में,
कभि चौरास लाइब्रेरी में,
तो कभी इंटरनल एक्जाम में,
और कभी फाइनल सेमेस्टर में,
मै तुमसे प्रश्न का उत्तर पूछता रहा,
तुम मुझे कुछ नहीं आता बोलकर भी टौप कर गयी,
और मैं बैक पेपर के फौर्म भरता रहा,
:- हरदेव नेगी