
इक बदली जब बदली,
भला ये हवा कैंसे बदली.
पात पेड़ों के टूटे नहीं,
केसू उनके उड़े नहीं.
इक………….. कैंसे बदली।
पंख फैलाये बैठे हैं,
मगर उड़ने का हौसला नहीं।
तैरने का तो जुनून है।
मगर दरिया में पानी नहीं।
इक………….कैंसे बदली।
लड़खड़ाते हुए चलते गये।
मगर मंजिलों का पता नहीं।
रूप का महल सुनहरा।
मगर किसी का बसेरा नहीं।
इक……………. कैंसे बदली।
आग हर तरफ लगी हुई है।
धुआँ फिर भी फैला नहीं,
कहने को तो सावन है।
मगर बादलों का कहीं निशां नहीं,
इक………………कैंसे बदली।
लेख – हरदेव नेगी