Corona Awareness Blog- ग्रीन जोन में रेड लेवल का सिग्नल (Green Zone Mai Red Level Ka Signal
बोडी– ये क्या तुम तबरी छत्त के तिरवाल, कभी ढिस्वाल व कभी इस छोर तो कभी उस छोर से अपनी धोंणी को काठी कुकूर की तरह लम्बी करके देख रहे हो,
बोडा – इस कुरोना के चक्कर में मुझे लगता है तेरा बरमंड भी लौक हो गया है, मुझे कुकूर बोल रही है कोई औरत के लक्षण हैं तुझमे,
बोडी – मेरा बरमंड तो नहीं हुआ लौक पर तुम्हारी धौंणी जरूर लौक हो गई है नैथर क्यों देख रहे हो इधर उधर, कबलाट किलै हो रहा तुम्हारे पेट में। एक जगा मु बैठो।
बोडा – तेरे साथ बात करना तो बेकार ही है, मैं तो देख रहा हूँ का बल मुख्यमंत्री ने ग्रीन जोन में गाड़ी चलाने का आदेश दिया है बल तो,।
बोडी – बल तो क्या? तुम्हारे ही ट्रक फंसे है साकीन धार जो सारा माल खराब हो गया है,
बोडा – यार तू अपना गिच्चा बंद रखेगी,
बोडी – मेरा गिच्चा तो बंद ही है जिसदिन खुलेगा तो छांसी नासी हो जायेगी।
बोडा – पुराने जमाने को लोग ठीक कहते थे बल ” फट्यां कच्छा अर् छुयांल जनन्यों का गिच्चा क्वी नि सिल सकदू”
बोडी – फिर तुमने ये भी सुना होगा कि सेंटुला अर् झांजी मनखी एक जन हौंदा “सेंटुलु ब्वोदू बल भ्वोल बटि गू नि खांण पर सु जरूर खांद, तनि झांजि भी होंदा कि बल “बाखरा खून खालू जु भोल बटि दारु पेलु, पर सु जरूर पेंदु”
बोडा – मि क्या सेंटुला हूँ।
बोडी – मैं भी क्या फट्यूं कच्छा हूँ,
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बोडी:- त् धौंणी किलै चा तुमरि गौं की तरफ फरकंणी?
बोडा :- मैं तो देखा रहा हूँ कोई गौं का डरैबर रुद्रप्रयाग जाने वाला है कुछ समान मंगवाना है,
बोडी – कन लगि तुमरा पुटगा आग, जो याद एैगी सुबेर-सुबेर रुद्रप्रयाग, क्या है उतना बकिबात का समाना जो गौं की दुकान में नहीं मिल रहा,
सौंणू :- हे माँ जी पिताजी का रेड लेवल का सिग्नल वहीं से आता है बल।
बोडी :- किसका लेबल ?
सौंणू :- दारू बोतल हे माँ, दारू बोतल सु भि रेड लेबल,
बोडी :- तबै छत मा तेरा बुबा तभी ये छोर तो तभी उस छोर रेड लेबल का सिग्नल ढूंढ रहे हैं।
बोडा :- ये उल्लू का पठ्टा भी दिन प्रतिदिन अपनी ब्वे की काख सरकता रहता है, रुक तू तेरा सिग्नल मैं करूंगा ठीक किसी दिन,
सौंणू – हे माँ पिताजी मैंथे उल्लू का पठ्टा छन्न बुना।
बोडी – संस्कार ही ढंग होते तो भली बांणी बोलते?
बोडा – तुम दोनो मां बेटा अपना गिच्चु बंद रखेंगे, ग्रीन जोन खुल गया है इसका मतलब ये थौड़े है कि मैं दारू मंगवा रहा हूँ, वो भी इतनी मंहगी रेड लेबल “जिसके खरीदने का मेरा लेबल नहीं है”
बोडि :- तो लेबल होना कहां से है? जिस इंसान ने गाड गदेरों छल पुजाई नेताओं के प्रचार में देसी कच्ची पीर रखी है वो कहां से अपना लेबल सही रखे बल,
बोडा :- यार तु मेरु दिमाग खराब नि कर, किस चीज की कमी कर रखी है तुम दोनों को, सगत-सगत फोन दोनों के पास, पतला गात वाली टीवी लगा रखी है बल, घर में सैरी व्यवस्था कर रखी है,
बोडी :- वो तो मैं दूसरे की ब्वारियों की तरह खर्च नहीं करती, जिनको दिनकू बन बनी का कपड़ा चाहिए बदलने को, और हर हफ्ते बजार पहुंची रहती हैं, तब पता चलता कि कमै क्या होती है, घी दूध, लकड़ी सब्जी बेची है तब जाकर बना ये तुम झांजी के भरोसे रहती तो कभी नि देखणं छो हमुन यु सुख:
बोडा:- हां भै सब कुछ त्येरू कमायूं चि मैं तो राहत कोष की बहुत राशि में पल रहा हूँ।
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Corona Awareness Blog (Green Zone Mai Red Level Ka Signal)
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बोडी:- राहत तो तुम्हें अभी भी नहीं मिलेगी बल, ये मत सोचना कि ग्रीन जोन होगा तो मैं बजार सटक जाऊंगा। कैंसा ये निरभगी मुख्यमंत्री है जिसने दारू का ठेका खोल दिए इस महामारी में,
बोडा:- सही तो किया जो ठेका खोल दिया, अर्थव्यस्था को भी तो बचाना है, और राजस्व घाटा भी कम करना है, तुझे तो कुछ अता पता भी इस बारे में।
बोडी:- बड़ा अर्थशास्त्री बन रहे हो, अपनी राजस्व बड़ा दू झांजी बुड्या, जिससे मवासी बननी है, दारू पीकर सरकार की खीसा भरकर क्या फैदा।
बोडा:- मैं क्या झांजी हूँ, मैं क्या दिन भर टल्ली रहता हूँ, तेहरे कहने पर सौंण व माघ के महीने दारू नहीं पीता मैं, हफ्ते में दो दिन तेरा भगवती का बरत रहता हैं, इस बार जनवरी के महीने से नहीं चाखी एक घूट भी, और मुझे झांजी कहती है, एक बोतल मंगा भी तो बुरा क्या, महीना भर चल ही जायेगी।
बोडी:- ये मत सोचना कि सरकार ने ग्रीन जोन कर रखा है तो रुद्रप्रयाग से बोतल मंगवा दूं, मेरी तरफ से अभी रेड जोन है, अगर सात-पांजा मास्दू से बोतल मंगवाई या फिर टुन होकर घर आये तो जिकुड़ी रूंग दूंगी,
बोडा:- तेरे साथ तो इंसान की जिंदगी खराब हो जायेगी। दिन भर गिच्चा मा दारू-दारू।
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बोडी:- अगर भला हौंदा त् ब्वन किलै चा, यूं निरभगी नेत्यों कु क्या जांणू, एक करफ बोलतें हैं कि हम सही समाज की स्थापना करेंगे और दूसरी तरफ बटि दारू का ठेका जखौ तख खोल यही हैं, यन मा कनक्वैक होंण काम।
बोडा:- समाज के छोटे बड़े काम के लिए ते दारू की जरुरत होती हैं ना तभी तो वो सफल होता हैं, वैंसे आज जरा मूण हो रहा है, तवैत भी ठीक हो जाती,
बोडी– निरभगी झांजी बुड्या एैंसे करो कि बच्चे के स्कूल में किताब की जगह दारू की बोतल दो वो भी समाज का हिस्सा है, और बुनियाद भी, और किस बात का मूण हो रहा है तुम्हारा, पिछले तीन महीने से इस महामारी से पूरी दुनिया परेशान है, सौंणू फेसबुक की पोस्ट दिखा रहा था, कोई दारू पीने की तड़प का विडियो बना रहा है, किसी को तंबाखू की कमी खल रही है, तो किसी को कुछ, अरे निरभगियों जरा उन किसानों, डाक्टर, नर्स, सफाई कर्मियों, पुलिस फौजियों सब्जी दूध, राशन वालों के बारे में सोचो जो तुम्हारे लिए खुद की जान जोखिम में डाल रहे हैं और एक तुम हो कि कब ग्रीन जोन होगा कब ठेका खुलेगा, पर तुम जैंसे झांजी, पत्थर फैंकने वालों को तो सब कुछ दारू या धर्म है, अरे देश रहेगा तब तो धर्म बचेगा ना।
बोडा :- यार सच्च मा तू ठीक ही कह रही है मैं यहां ठेका खुलने के इंतजार में हूँ और दूसरी तरफ बहुत लोगों की आंखे हमेशा के लिए बंद है, तूने मेरी आँखे खोल दी, चाहे सरकार ठेका खोले या एक पेटी तक दारू रखने की स्वतंत्रता रखे पर मैं अब बोतल की तरफ नहीं देखूंगा, वो पैंसे अपने बच्चे की शिक्षा के लिए रखूंगा, सरकार के राजस्व के चक्कर में कहीं मेरा राजस्व न चला जाये।
बोडी :- परसी बटी यही तो समझा यही हूँ, एैंसा न हो कि ग्रीन जोन की छूट के चक्कर में जिंदगी न हमेशा के लिए छूट जाए और हमेशा के लिए रेड लेबल का कलंक लग जाए।
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बोडा :- चलो गाँव में एक सब्जी का ठेका खोले हम, अपने भविष्य का राजस्व बड़ायें हम।
बोडी:- बंजर खेतों को ग्रीन जोन में बदलें हम, शराब नीती का रेड जोन बनायें हम
Bhut badiya bhai ji
Wahhh nice