Hum Jakh Chaa Takh – हम जक्ख छां तक्ख
Hum Jakh Chaa Takh – हम जक्ख छां तक्ख हम जक्ख छां तक्ख डांडा गौं मुल्क चा, हम जक्ख छां तक्ख एक सैंत्यूं बंण चा।।… Read More »Hum Jakh Chaa Takh – हम जक्ख छां तक्ख
Hum Jakh Chaa Takh – हम जक्ख छां तक्ख हम जक्ख छां तक्ख डांडा गौं मुल्क चा, हम जक्ख छां तक्ख एक सैंत्यूं बंण चा।।… Read More »Hum Jakh Chaa Takh – हम जक्ख छां तक्ख
ना यनु ह्वे ना तनु ह्वे, जु ह्वे सु कन्न ह्वे। अरे ह्वोंण वालि बात छैई त् ह्वेगि। पर बात या चि कि, ह्वे पर… Read More »जु ह्वे सु कन्न ह्वे
मेरे गाँव में पानी का धारा, धारे का पानी ठंडा कमरी डस्का के घस्यारी. ले चली रे पानी का बंठा. गुठ्यार में दुधारू भैंसी, मुख… Read More »मेरे गाँव में
हिमालय से बड़ी गाथा च जौंकि, सी मनखी अब यख नि रैनी, जौंन दीनी अंश अंश अपनी देह कु यिं माटी ते, बून्द बून्द खून… Read More »“सी मनखी अब यख नि रैनी”
कुछ तुमुन फरकै, कुछ मि फरकोलु. कुछ तुमुन सनकै, कुछ मि सनकोलु. कुछ तुमुन चितै, कुछ मि चितोलु. कुछ तुमुन बिंगै, कुछ मि बिंगोलु. कुछ… Read More »कुछ तुमुन
ऋतु बोड़ीगे चौमासा, डांडयों बासिग्ये हिलांसा. रौड़ी दौड़ीक् सार्यूं बीच, मैनू एैग्ये बल चौमासा. नैल्ये गोडें मा लगि भग्यान, क्वोदा झंगोरा कि सार्यूं मा. बरखा… Read More »ऋतु बोड़ीगे
स्या एक मुट ऊजाल्यू जन; घिंदूड़ी की पांखी सी। स्या बाबा की ब्यटुलि जन त्…..; ब्वे की सांखी सी..! स्या बसंत ऋतु जन त्सूखी डाली… Read More »सांखी:- गढ़वाली कविता
कन्न् एै यु एैंसू बसग्याल। बिना काजा कु ह्वे मै मुंड कपाल।।।। माया का कुबाटा पर। अजांण छा म्यारा जिकुड़ा का हालचाल।।। पैल् पैली छुंयूं… Read More »एैंसू बसग्याल
सौंगू दिख्येदूं पर ठुक एैंच आगास चा, ये गौं का बाटा कु……….! पय्यां डालि किलै सूख्यूं चा……….। घस्येनू कु आढासु छों जैंका छैल् स्कूल्या दगड़यूं… Read More »सौंगू दिख्येदूं
स्वांणी मुखड़ी फ्योलीं जन चार। कजर्याली आंखी जन ब्वे की चार। जिदेर जिकुड़ी अर् बालू मन। सच्ची ब्वोला! कैंकि ह्वेली ईं पर अन्वार। … Read More »अन्वार